23 नवंबर, 2010


"यहां सब बिकाऊ है"
व्यवसाय बनती जा रही है पत्रकारिता... ये बात सबसे सुनी थी... लेकिन यकीं नहीं था... और आंखे तब खुली जब ये सब कुछ मेरे सामने हो रहा था... हालाकि पत्रकारिता का मामूली सा अनुभव है... लेकिन जब पत्रकारिता के मैदान में कदम रखा तो एक साल उसे समझने में लग गए... उपर से तो मैदान में बिछी हरी घास की तरह हरियाली नजर आती है... लेकिन जब अंदर झांक कर देखा तो हकीकत सामने आ गई... खबरों को कैसे बेचा और खरीदा जाता है... एक साल के बाद इसका अनुभव भी हो गया... ना चाहते हुए भी मजबूरी में खबरों का सौदा करना पड़ा... करती भी क्या... एक अदना सा कर्मचारी और कर भी क्या सकता है... बस बॉस का आदेश मानकर काम करते रहे... और पत्रकारिता के लिए जो सम्मान था उस पर अब शक होने लगा... महज तीन सालों में जीवन की सच्चाई सामने आ गई... ये किस्सा महज पत्रकारिता का ही नहीं है... आज की दुनिया मे सब बिकाऊ है... चाहे दुकान में मिलने वाला राशन हो... या फिर नेताओं की कुर्सी... सबका सौदा होता है... और व्यवसाय में तो प्रोफिट ही मकसद होता है... फिर चाहे किसी अपने को नुकसान क्यों ना हो रहा हो... क्या फर्क पड़ता है... प्रोफिट तो मिल रहा है न... और यही मकसद भी है। तो फिर पत्रकारिता पर ही प्रश्नचिन्ह क्यों। देश की रक्षा की शपथ लेने वाले भी तो शहीदों की शहादत के नाम पर व्यवसाय कर रहे हैं... सेवा के नाम पर राजनीति का सुख भोग रहे नेताओं ने तो सबको पीछे छोड़ दिया है... अपनी ताकत का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं... छोटे छोटे भ्रष्टाचार के खिलाफ हर कोई उंगली उठाता है... लेकिन सफेदपोश धोखेबाजों के लिए जिंदाबाद के नारे लगाते हुए लाखों हाथ खड़े मिलते हैं... ये अलग बात है कि इनमें से कई हाथों का मोल भाव किया जाता है... छोटे मोटे भ्रष्टाचार तो पनपते हैं और खत्म हो जाते हैं... लेकिन सालों से चले आ रहे घपलों पर नजर तो सबकी है... लेकिन कोई उसे देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाता... ऐसे कई मामले हैं जो अदालत की चौखट तक तो पहुंच गए हैं... लेकिन दोषियों को सजा देने में न्याय प्रणाली भी कुछ खास नहीं कर पाई... मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि यहां सब कुछ बिकाऊ है।

30 जनवरी, 2010

फिर याद आए बापू

मोहनदास करमचंद्र गांधी एक ऐसा नाम जिसने भारत में क्रांति पैदा कर दी... वैसे देश में क्रांति लाने वाले और भी कई लोग थे॥ लेकिन गाँधी का क्रांति लाने का माध्यम सबसे अलग और निराला था॥ सत्य, अहिंसा के पथ पर चलकर महात्मा गांधी ने हमें आजाद कराया... मोहनदास करमचंद्र गांधी को महात्मा शब्द रविंद्र नाथ टैगोर ने दिया था... महात्मा का मतलब महान आत्मा से है... भारत में उन्हें बापू के नाम से भी याद किया जाता है... गुजराती में बापू का मतलब पिता होता है... बापू को राष्ट्रपिता का सम्मान दिया गया... ये तो कुछ ऐसी बातें हैं जो हर कोई शख्स जानता है... लेकिन मेरी नजर में बापू वो प्रतिमा है॥ तो चुप और खामोश रहकर भी जीने की जज्बा देता है... दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देता है... जो कभी न हार मानने का पाठ सिखाता है... बापू ने न केवल अमीर और उचे तबके के लिए काम किया... बल्कि दलित, ग्रामीण और बेसहारा लोगों को भी सहारा दिया... किसानों के लिए बापू ढ़ाल बने, दलितों पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई, और पूरे देश को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट किया... अपनी पोशाक सादी धोती और सूती की शॉल उन्होंने चरखे से कातकर खुद बनाई थी... सादा भोजन करने वाले बापू सीधे और सरल व्यवहार के थे... देश के ऐसे सच्चे वीर को मेरा शत शत नमन...





10 जनवरी, 2010

अमर का नया खेल


अमर सिंह समाजवादी पार्टी के कर्ताधर्ता मुलायम सिंह यादव से खफा हैं... अमर के इस्तीफे से तो यही लगता है... अमर सिंह ने एसपी के महासचिव पद के साथ संसदीय बोर्ड समेत सभी पदों से बाय-बाय कह दिया है... अमर सिंह ने एक बयान में कहा है कि “ राजनीति से मेरा मन दुखी हो गया है ” इसके अलावा निजी चैनल से बातचीत के दौरान अमर सिंह ने इस्तीफे का कारण खराब सेहत बताया... अमर के इस्तीफे से संजय दत्त का अमर प्रेम भी सबके सामने आ गया.. अमर सिंह ने पार्टी को क्या बाय-बाय कहा संजू बाबा ने भी पार्टी को आखिरी सलाम कर दिया... संजय दत्त ने पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव के बयान पर भी अफसोस जताया है... “ रामगोपाल यादव ने कहा था कि फिल्म वालों की वजह से पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ ” रामगोपाल के इस बयान ने पार्टी में भले ही उथलपुथल मचा दी हो... लेकिन मुलायम सिंह यादव को उम्मीद है कि सब पहले की तरह ही ठीक हो जाएगा... मुलायम सिंह यादव का कहना है कि वो जल्द ही अमर सिंह को मना लेंगे... भले ही चाहे मुलायम पार्टी का दर्द जाहिर न करें... लेकिन पार्टी में चल रही तकरार की आवाज अब बाहर भी सुनाई देने लगी है... खैर अमर का ये नया दांव को अमर ही जानें... लेकिन अमर के इस्तीफे से मुलायम की रातों की नींद जरुर उड़ गई है...

31 दिसंबर, 2009

नए साल में याद आया मकसद

2009 बड़ा अटपटा रहा ये साल... कुछ हासिल हुआ... और बहुत कुछ खोया... कई सपने पूरे हुए और कई बुने.. जिनपर काम चल रहा है... कई ऐसे दोस्त मिले जिनसे जिंदगी भर का साथ जुड़ गया... और कई पुराने दोस्त धीरे धीरे दूर हो गए... दोस्ती अभी भी है... लेकिन दूरिंया बड़ गई हैं... क्या पाया क्या खोया यही सोचने में साल दो हजार नौ का आखिरी दिन बीत गया... फिर एक पल ध्यान आया... कैसा होगा आने वाला साल... आगे की रणनीति बनाने के लिए मैने अपने दिमाग के सारे पेंच घुमा डाले... सोचा आने वाले वक्त में कुछ नया किया जाए... नया.... लेकिन क्या... फिर याद आई वो मासूम आंखे... ऑफिस से घर लौटते वक्त दो नन्हे से हाथ मेरी ओर बड़े... कहा गुब्बारे ले लो... मै हमेशा की तरह हंस दी... लेकिन जब मैने उस लड़की को दोबारा देखा तो उसकी पेट की भूख मुझे उसकी आंखों में नजर आई... मैने बिना सोचे फौरन उसे दस रुपए दिए... और उससे तीन गुब्बारे ले लिए... पैसे मिलने के बाद उसकी आंखों की चमक और चेहरे की हंसी ने मुझे राहत दी... हर बार अपने लिए ही जीती आई हूं... अपने से अलग अगर सोचा तो माता पिता, परिजनों या दोस्तों के बारे में... आज महसूस कर रही हूं... कि जिंदगी क्या है... और संघर्ष किसे करते हैं... मेरा भाषा में संघर्ष नौकरी करना... करियर बनाना... अपनी जरुरत की चीजें पूरी करना था... लेकिन वो नन्ही सी बच्ची बिन कुछ कहे मुझे संघर्ष का मतलब सिखा गई... और सिखा गई मेरी जिंदगी का मकसद...

28 दिसंबर, 2009

रंग रसिया तिवारी

नारायण तेरे कितने रुप

नारायण दत्त तिवारी यूपी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद पर राज कर चुके हैं... राजनीतिक में तिवारी का सफर इतना ही नहीं है... राजनीति के मैदान में तिवारी काफी पुराने और अच्छे खिलाड़ी साबित हुए हैं... लेकिन तिवारी के साथ जुड़ी कई और बातें भी हैं... जिससे आजकल तिवारी सुर्खियों में छाए हुए हैं... कई बार महिलाओं के साथ तिवारी के रिश्तों की बातें सामने आई... लेकिन वो महज सुनी सुनाई बातें थी... लेकिन तीन महिलाओं के साथ नारायण दत्त तिवारी आपत्ति जनक हालत में मिले... जिसे तेलगु के निजी टीवी चैनल ने प्रसारित भी किया... इसके बाद तिवारी ने स्वास्थ का हवाला देते हुए आध्र प्रदेश के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया... हालाकि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने विडियो क्लिप प्रसारण पर रोक लगा दी थी... इस आग को तब हवा लगी जब उत्तराखंड की एक महिला राधिका ने तिवारी के रिश्तों के कई राज खोले... राधिका ने महिलाओं के लिए तिवारी की भूख की दास्तां बताई... इसके अलावा रोहित शेखर नाम का शख्स भी नारायण दत्त तिवारी का बेटा होने का दावा कर चुका है... रोहित ने अपने अधिकार के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.. लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका को योग्य न मानते हुए खारिज कर दिया... उत्तराखंड में भी नैपाली महिला सारिका प्रधान के साथ नारायण दत्त तिवारी की लीलाओं के चर्चे भी आम थे... ये उस वक्त की बात है जब तिवारी उत्तरांखड के मुख्यमंत्री थे... महिलाओं संग तिवारी के रिश्तों को उत्तराखंड के लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने बेहतर तरीके से दिखाया... रंग रसिया तिवारी को नरेंद्र सिंह नेगी ने कलयुगी नारायण कहा... और महिलाओं के साथ कलयुगी नारायण की रास लीलाएं दिखाई... और एलबम का नाम रखा...
नौछमी नारायण... http://www.youtube.com/watch?v=ZWY-htpsv0I

2006 में रिलीज़ हुई ये एलबम बहुत पॉपुलर हुई... और लोगों को कलयुगी नारायण की लीलाएं भी खूब पसंद आई... इस विवादित गाने के बाद लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी को धमकियां भी दी गई... यहां तक कि उनकी स्टेज परफॉर्मेंस भी सरकारी कार्यक्रमों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दी गई... निजी टीवी चैनल ने तिवारी की जिस करतूत का पर्दाफाश किया है... वो बेहद शर्मनाक है... अगर से सब सच है तो राज्यपाल पद और गरिमा के साथ उस आम आदमी के भरोसे को भी क्षति पहुची है... आज मुझे और मुझ जैसे आम लोगों को ये कहते हुए शर्म आती है... जिसे प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी... उसे विकास की नहीं जिस्म की भूख है...

22 दिसंबर, 2009

ये है मनसे !

http://www.youtube.com/watch?v=OlCSr2nAzzs
आज मंगलवार को सुबह सुबह दफ्तर पहुंची... दफ्तर पहुचने के साथ खबरों का सफर शुरु हो गया... पहली खबर थी एमएनएस की गुंडागर्दी.... खबर ये थी कि एमएनएस के कार्यकर्ताओं ने सिद्विविनायक मंदिर के पास साधुओं को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा... एमएनएस की गुंडागर्दी ये खबर अब आम हो चुकी है... लेकिन सोते हुए साधुओं की पिटाई करना... ये सुनकर और दृष्य देखकर मन पसीज गया... जब हम गुलाम थे.. तब अंग्रेजों ने ऐसा ही जुल्म भारतीयों पर ढहाया होगा... जो आज एमएनएस के कार्यकर्ता ढहा रहे हैं...

महाराष्ट्र को अपनी जागीर समझने वाले गुंडे तब कहा थे जब प्रदेश की राजधानी मुम्बई आतंकी खतरे से लहुलुहान हो रही थी... तब ये ठेकेदार कहीं बिल में जाकर छुप गए थे... क्योंकि उस वक्त इनसे भी बड़ा गुंडा इन्ही के घर को ध्वस्त करने की कोशिश कर रहा था... तब अगर आतंक से कोई लड़ रहा था... तो वो था आम आदमी... तो फिर जब देश में शांति होती है... तो फिर क्यों ये क्षेत्रवाद की चिंगारी से देश की एकता को जलाने की कोशिश करते हैं... हालाकि हर बार ये गुंडे अपने नापाक मंसूबों को सच नहीं कर पाते... लेकिन कुछ बेकसूर इनकी चपेट में जरुर आ जाता है... कभी ये मराठी भाषा के नाम पर देश को राज्यों में बांटने की कोशिश करते हैं... तो कभी सेब्रिटी को निशाना बनाकर पब्लिसिटी हासिल करने की कोशिश... इतना ही नहीं उत्तर भारतियों के नाम पर तो राजनीति रोटी सेकी जा रही है... मनसे की कायरता की दास्तां यहीं खत्म नहीं होती... कुछ दिनों पहले उसने अपना निशाना एक निजी चैनल के दफ्तर को भी बनाया था... और तो और एसेबंली की मरियादा को तोड़ने से ये नहीं चूके... और आज निहत्थे साधुओं से मारपीट कर वो अपनी झूठी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है... लेकिन ये उसका डर है... कायरता है... डर है कि कहीं कोई और उसकी गद्दी न छीन ले... और कायरता इसलिए... जब महाराष्ट्र को अपने सैनिकों की जरुरत थी... तो मराठी प्रेम का राग अलापने वाले ही बिल में जाकर छुप गए... और उन जवानों ने गोली खाई जिनके अपने कभी उन कायरों के लाठी डंडों का शिकार हुए थे... क्योंकि ये लड़ाई किसी प्रदेश की नहीं बल्कि देश की थी... देश का एक हिस्सा छलनी हो रहा था... और उसे बचाने के लिए देश के सच्चे जवान शहीद हो गए...


मै नमन करती हूं... उन वीर जवानों को जिनकी बदौलत आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं... और उन कायरों के लिए मेरे पास कोई शब्द ही नहीं... क्योंकि वो केवल हिंसा की भाषा जानते हैं...